भारत के राजस्थान राज्य के रेगिस्तानी इलाके में स्थित एक मंदिर ऐसा है जो न सिर्फ श्रद्धा का केंद्र है, बल्कि वीरता और चमत्कार का प्रतीक भी बन चुका है। हम बात कर रहे हैं श्री तनोट माता मंदिर की, जो भारत-पाकिस्तान सीमा के पास जैसलमेर जिले में स्थित है।
तनोट माता मंदिर कहाँ स्थित है?
श्री तनोट माता मंदिर राजस्थान के जैसलमेर से लगभग 120 किलोमीटर दूर भारत-पाकिस्तान सीमा के पास स्थित है। यह मंदिर थार के रेगिस्तान में स्थित है और लोंगेवाला पोस्ट से भी नजदीक है। मंदिर तक पहुंचने के लिए सड़क मार्ग से यात्रा की जाती है, जो जैसलमेर से सीधा रास्ता है।
तनोट माता का पौराणिक महत्व
स्थानीय मान्यताओं के अनुसार, तनोट माता देवी हिंगलाज माता का अवतार मानी जाती हैं। कहा जाता है कि इस मंदिर की स्थापना लगभग 1200 साल पहले हुई थी और यह क्षेत्रीय भाटी राजाओं के समय से आस्था का केंद्र रहा है। राजस्थान के सैनिकों और आम जनता के लिए यह मंदिर शक्ति, साहस और सुरक्षा का प्रतीक रहा है।
1965 का भारत-पाकिस्तान युद्ध और चमत्कार
1965 में पाकिस्तान ने भारत पर हमला किया। पाकिस्तानी सेना ने लोंगेवाला और तनोट क्षेत्र में बमबारी शुरू की। ऐतिहासिक दस्तावेजों और स्थानीय लोगों के अनुसार, पाकिस्तान ने तनोट माता मंदिर क्षेत्र में लगभग 3000 बम गिराए, जिनमें से 450 बम सीधे मंदिर परिसर में गिरे।
आश्चर्यजनक रूप से, इन बमों में से एक भी बम नहीं फटा। यह एक ऐसा चमत्कार था जिसने न केवल स्थानीय लोगों बल्कि पूरे भारत को चौंका दिया। लोगों का विश्वास और भी मजबूत हो गया कि माता ने अपने भक्तों और मंदिर की रक्षा की।
1971 का युद्ध और फिर से चमत्कार
1965 के युद्ध के छह साल बाद 1971 में एक बार फिर भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध हुआ। इस बार भी पाकिस्तानी सेना ने तनोट मंदिर को लक्ष्य बनाया, लेकिन फिर से एक भी बम मंदिर पर असर नहीं कर पाया। यह दूसरी बार था जब माता की चमत्कारी शक्ति को सैनिकों ने अपनी आँखों से देखा और अनुभव किया।
इस युद्ध में भारतीय सेना ने लोंगेवाला पोस्ट पर वीरता के साथ मुकाबला किया। फिल्म 'बॉर्डर' इसी युद्ध पर आधारित है, जिसमें मंदिर और सैनिकों की आस्था को बखूबी दिखाया गया है।
मंदिर में आज भी मौजूद हैं वो बम
जो बम 1965 और 1971 में मंदिर पर गिरे थे लेकिन फटे नहीं, वे आज भी मंदिर परिसर में बने संग्रहालय में सुरक्षित रखे गए हैं। ये बम मंदिर की दीवारों पर कांच के अंदर प्रदर्शित हैं। यह संग्रहालय श्रद्धालुओं के लिए न केवल ऐतिहासिक दस्तावेज है, बल्कि देशभक्ति और माता की कृपा का प्रतीक भी है।
बीएसएफ की सेवा और भक्ति
1965 के युद्ध के बाद से ही सीमा सुरक्षा बल (BSF) को इस मंदिर की देखरेख की जिम्मेदारी सौंपी गई। आज भी BSF के जवान मंदिर की सफाई करते हैं, रोजाना आरती का आयोजन करते हैं और हर त्यौहार पर विशेष पूजा का आयोजन करते हैं। मंदिर में लगे राष्ट्रीय ध्वज और सैनिकों की मौजूदगी इस स्थान को अत्यधिक पवित्र और गौरवमयी बनाते हैं।
फिल्म ‘बॉर्डर’ और मंदिर का महत्व
1997 में बनी सुपरहिट फिल्म ‘बॉर्डर’ तनोट माता मंदिर और लोंगेवाला पोस्ट की लड़ाई पर आधारित है। फिल्म में दर्शाया गया है कि कैसे भारतीय सेना ने पाकिस्तान की टैंकों से लैस सेना का सामना किया और माता की कृपा से विजय प्राप्त की। इस फिल्म के बाद मंदिर की प्रसिद्धि और बढ़ गई और लाखों लोग यहाँ दर्शन के लिए आने लगे।
तनोट माता मंदिर कैसे पहुँचें?
- नजदीकी शहर: जैसलमेर (120 किमी)
- रेल मार्ग: जैसलमेर रेलवे स्टेशन से टैक्सी या जीप द्वारा मंदिर
- सड़क मार्ग: जैसलमेर से सीधी सड़क जो मंदिर तक जाती है
- उत्तम समय: अक्टूबर से मार्च, जब मौसम ठंडा और यात्रा के अनुकूल होता है
FAQs – अक्सर पूछे जाने वाले सवाल
- Q1: तनोट माता मंदिर की स्थापना कब हुई थी?
A: मंदिर की स्थापना लगभग 1200 वर्ष पूर्व मानी जाती है। - Q2: क्या युद्ध के बम आज भी मंदिर में मौजूद हैं?
A: हाँ, 1965 और 1971 के बम आज भी मंदिर के संग्रहालय में प्रदर्शित हैं। - Q3: मंदिर की देखरेख कौन करता है?
A: बीएसएफ (BSF) के जवान मंदिर की देखरेख और पूजा करते हैं। - Q4: क्या आम लोग मंदिर में दर्शन के लिए जा सकते हैं?
A: जी हाँ, आम लोग मंदिर में बिना किसी रोकटोक के जा सकते हैं, लेकिन सीमा क्षेत्र में होने के कारण पहचान पत्र साथ रखें।
(ये आर्टिकल में सामान्य जानकारी आपको दी गई है अगर आपको किसी भी उपाय को apply करना है तो कृपया Expert की सलाह अवश्य लें) RRR
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