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टाइप 1 या टाइप 2 बनाम टाइप 1.5 मधुमेह के लक्षण और जोखिम || Type 1 Or Type 2 Vs Type 1.5 Diabetes Symptoms & Risk



डायबिटीज एक ऐसी बीमारी बन चुकी है जो लगभग हर घर में आपको देखने को मिलेगी। डायबिटीज टाइप वन और टू के बारे में तो आपने सुना होगा। लेकिन क्या आप डायबिटीज टाइप 1.5 के बारे में जानते हैं?

दरअसल यह टाइप वन और टाइप टू जैसा ही होता है लेकिन अक्सर कभी-कभी लोगों को गलत भी यह डायग्नोज हो जाता है। 

आइए ऐसे में आपको बताते हैं टाइप 1.5 डायबिटीज क्या है?

Why is step 1.5 more dangerous than stage 1 and step 2?


दरअसल आजकल गलत खानपान और खराब लाइफ स्टाइल के चलते डायबिटीज के मरीजों की संख्या दिनोंदिन बढ़ती जा रही हैं। यह एक सीरियस बीमारी है और इसका वक्त पर इलाज होना बेहद जरूरी है। ऐसे में डायबिटीज के बारे में सही जानकारी रखना बेहद जरूरी है। 

आपने टाइप वन और टाइप टू डायबिटीज के बारे में तो सुना होगा लेकिन क्या आप टाइप 1.5 डायबिटीज के बारे में जानते हैं ?


टाइप 1.5 डायबिटीज एक ऐसी बीमारी है जो टाइप वन और टाइप टू दोनों की तरह ही है लेकिन अक्सर इसका गलत डायग्नोज हो जाता है। एडल्ट्स में इसे अव्यक्त ऑटो इम्यून मधुमेह यानी एलएडीए के रूप में भी जाना जाता है। पॉपुलर अमेरिकी पॉप बैंड एनएसवाईएनसी में अपनी भूमिका के लिए पॉपुलर लॉन्स बैंड्स ने हाल ही में खुलासा किया कि उन्हें यह बीमारी है। जिसके बाद ज्यादा लोगों को इस स्थिति के बारे में पता चला। 

तो टाइप 1.5 डायबिटीज क्या है और इसका निदान और इसका ट्रीटमेंट कैसे किया जाता है?


आइए जानते हैं। दरअसल टाइप वन डायबिटीज एक ऑटो इम्यून कंडीशन है जहां शरीर का इम्यून सिस्टम अग्नाशय में सेल्स पर हमला करती है और जो हार्मोन इंसुलिन बनाती है उसे नष्ट कर देती है। इससे इंसुलिन का उत्पादन प्रोडक्शन बहुत कम या बिल्कुल नहीं होता है। एनर्जी के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले खून से ग्लूकोज हमारे सेल्स में ले जाने के लिए इंसुलिन काफी महत्त्वपूर्ण है। यही कारण है कि टाइप वन डायबिटीज वाले लोगों को हर दिन इंसुलिन दवा की जरूरत होती है। टाइप वन डायबिटीज आमतौर पर बच्चों या फिर युवा वयस्कों में दिखाई देती है। वहीं टाइप टू डायबिटीज एक ऑटोइम्यून समस्या नहीं है बल्कि यह तब होता है जब शरीर के सेल्स समय के साथ इंसुलिन के प्रति प्रतिरोधी हो जाती हैं और अग्नाशय यानी पैंक्रियाज इस प्रतिरोध को दूर करने के लिए जरूरी इंसुलिन बनाने में सक्षम नहीं होता। 

टाइप वन डायबिटीज के अलावा टाइप टू डायबिटीज वाले लोग कुछ इंसुलिन का प्रोडक्शन कर पाते हैं। टाइप टू एडल्ट्स में ज्यादा आम है लेकिन बच्चों और युवाओं में तेजी से देखा जा रहा है। 

बात करें टाइप 1.5 डायबिटीज की। टाइप वन डायबिटीज की तरह टाइप 1.5 तब होता है जब इम्यून सिस्टम इंसुलिन बनाने वाली अगना सेल्स पर हमला करती हैं। लेकिन टाइप 1.5 वाले लोगों को अक्सर तुरंत इंसुलिन की जरूरत नहीं होती क्योंकि उनकी कंडीशन ज्यादा धीरे से डेवलप होती है। टाइप 1.5 डायबिटीज वाले ज्यादातर लोगों को निदान के 5 साल के भीतर इंसुलिन का इस्तेमाल करने की जरूरत नहीं होगी। जबकि टाइप वन वाले लोगों को आमतौर पर ट्रीटमेंट से ही इसकी जरूरत होती है। 

टाइप 1.5 डायबिटीज का डायग्नोज आमतौर पर 30 से ज्यादा उम्र के लोगों में किया जाता है। यह टाइप वन डायबिटीज के सामान्य आयु से ज्यादा है। लेकिन टाइप टू के लिए सामान्य निदान आयु से कम है। टाइप 1.5 डायबिटीज जेनेटिक और ऑटोइम्यून रिस्क फैक्टर को टाइप वन डायबिटीज जैसे विशिष्ट जीन वेरिएंट के साथ शेयर करता है। हालांकि सबूतों से यह भी पता चला है कि मोटापा और शारीरिक इन एक्टिवोस जैसे लाइफ स्टाइल फैक्टर्स से प्रभावित हो सकता है जो आमतौर पर टाइप टू डायबिटीज से जुड़े हुए होते हैं। 

बात करें इसके लक्षणों की तो इसमें प्यास ज्यादा लगती है, बार-बार पेशाब आता है, थकान महसूस होती है, धुंधला दिखाई देता है बिना किसी कोशिश के वजन कम होने लगता है। 

(ये आर्टिकल में सामान्य जानकारी आपको दी गई है अगर आपको किसी भी उपाय को apply करना है तो कृपया Expert की सलाह अवश्य लें) RRR
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