अशोक स्तंभ से जुड़ी कॉन्ट्रोवर्सीज के बारे में तो आपने सुन ही लिया होगा। लेकिन क्या आप यह जानते हैं कि अशोक स्तंभ का इतिहास आखिर क्या है ?
- अशोक स्तंभ को किसने बनवाया ?
- कैसे स्तंभ को खोजा गया ?
- कैसे यह चिन्ह देश का नेशनल एंबलम बना ?
- किसने इसे डिजाइन किया ?
- सबसे अहम सवाल कहां-कहां इस चिन्ह का इस्तेमाल नहीं हो सकता ?
अगर आपको भी इन सवालों का जवाब नहीं पता तो चलिए लिए चलते हैं आपको अशोक स्तंभ से जुड़े इतिहास की यात्रा पर।
अशोक स्तंभ को किसने बनवाया ?
अशोक स्तंभ को भारत के महान सम्राट सम्राट अशोक ने लगभग 250 ईसा पूर्व बनवाया था और ऐसा नहीं है कि सिर्फ इकलौता स्तंभ था जो सम्राट अशोक ने बनवाया था। उनके द्वारा ऐसे कई स्तंभ बनाए गए थे जो भारतीय उपमहाद्वीप में फैले उनके राज्य में कई जगह पर लगवाए गए थे। खासकर यह स्तंभ ऐसी जगह लगवाए जो भगवान बुद्ध से जुड़ी हुई थी।
अशोक स्तम्भ कहा कहा पे पाया गया है?
इतिहासकारों के मुताबिक सम्राट अशोक ने इन स्तंभों की रचना धर्म स्तंभ के रूप में करवाई थी। आज की बात करें तो सम्राट अशोक के साथ स्तंभ ही प्रमुख मिले हैं। इनमें से सांची का स्तंभ मुख्य है, लेकिन इन सभी का डिजाइन अलग-अलग है। सम्राट अशोक के यह सब बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और हरियाणा के कुछ हिस्सों में पाए गए। इनमें से दो स्तंभों को फिरोजशाह तुगलक द्वारा 1351 से 1388 इसी के बीच दिल्ली में रियल लोकेट किया गया। इनमें से एक पिलर आज भी दिल्ली यूनिवर्सिटी के पास स्थित है। जिसे दिल्ली-मेरठ पिलर भी कहा जाता है। एकदम फिरोजशाह कोटला के पास स्थित है जिसे दिल्ली टोपरा पिलर कहा जाता है।
अशोक स्तम्भ को किसने हटाया था?
हालांकि कहा जाता है कि मुगलकाल में भी कई स्तंभ को मुगल शासकों द्वारा एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाया गया। अब स्थित अशोक स्तंभ के चिन्ह को भारत के नेशनल एंबलम तौर पर चुना गया वह है सारनाथ में खोजा गया अशोक स्तंभ। जिसे मार्च 1995 में खोजा गया था।
अशोक स्तम्भ की खोज की कहानी
इसकी खोज की कहानी काफी दिलचस्प है। ब्रिटिश राज पर कई किताबें लिखने वाले मशहूर इतिहासकार चार्ल्स रोबिन लेंथ सम्राट अशोक से जुड़ी खोजों पर भी लिख चुके हैं। उन्होंने अशोका रिसर्च ऑफ इंडिया लास्ट एंपरर में सारनाथ के अशोक स्तंभ की खोज के बारे में भी बताया है। अपनी इस किताब में वह इस स्तंभ को खोजने वाले शख्स फ्रेडरिक ऑस्कर ओएर्टेल के बारे में बताते हैं , जो पैदा जर्मनी में हुए थे लेकिन बाद में जर्मन नागरिकता छोड़ भारत आ गए। और यहां उन्होंने ब्रिटिश नागरिकता ले ली क्योंकि तब भारत ब्रिटिशर के ही अधीन था।
इस स्तंभ को खोजने वाले शख्स फ्रेडरिक ऑस्कर ओएर्टेल के बारे में जानिए
फ्रैड्रिक की बात करें तो उन्होंने पहले रेलवे में बतौर सिविल इंजीनियर की नौकरी की और फिर लोक निर्माण विभाग में ट्रांसफर ले लिया। साल 1903 में फ्रैड्रिक का तबादला बनारस हो गया। जहां से सारनाथ की दूरी महज दस किलोमीटर है। फ्रैड्रिक के पास आर्टिरियल रोड्स लेकर किसी तरह की कोई डिग्री नहीं थी, लेकिन उनकी रुचि पूरा तत्वों की खोज मे थी। फ्रैड्रिक ने चीनी यात्रियों की किताबों से यह जानकारी हासिल की कि सारनाथ के पास उन्हें कहां खुदाई करनी चाहिए। उन्होंने सारनाथ का एक एरिया चिन्हित किया। और उन्हें खुदाई की इजाजत भी दे दी गई। सबसे पहले उन्हें उस जगह पर गुप्तकाल के मंदिर के सबूत मिले। जिसके नीचे अशोक-काल का एक ढांचा था।
इतिहासकार एलन के मुताबिक फ्रैड्रिक को पहले स्तंभ का निचला ढांचा मिला और फिर साल 1995 में उन्हें स्तंभ का शिश भी मिल गया। जिस पर शेरो की आकृति बनी हुई थी। इस खोज को सदी की महान खोजों में से एक माना जाता है। जहां स्तंभ मिला था फौरन ही वहां म्यूजियम बनाने के आदेश भी दे दिए गए।
भारत का पहला ऑन साईट म्यूजियम
सारनाथ म्यूजियम भारत का पहला ऑन साईट म्यूजियम है। आज भी यह अशोक स्तंभ हों वही रखा गया है। खैर इस खोज से 42 साल बाद भारत आजाद हो गया और 1947 में आजादी से पहले यह सवाल उठा कि भारत का राष्ट्रिय प्रतिक क्या होना चाहिए। ऐसे में 22 जुलाई 1947 को जवाहरलाल नेहरू ने संविधान सभा के सामने प्रस्ताव रखा कि देश के झंडे और राष्ट्रीय प्रतीक के लिए एक डिजाइन बनाया जाना चाहिए।
भारत का राष्ट्रिय प्रतिक कैसे बना?
ऐसे में पंडित नेहरू ने सम्राट अशोक के सुनहरे दौर के शासनकाल की बात कही। यही नहीं पंडित नेहरू ने सम्राट अशोक के काल को अंतरराष्ट्रीय रूप से भारत की छवि को बदल देने वाला भी बताया। इसके बाद नेहरू के प्रस्ताव पर सभी नेता एक मत हो गए कि देश के पास एक असरदार राष्ट्रीय प्रतीक होना ही चाहिए। और यह भी तय था कि यह प्रति अशोक के दौर से ही लिया जाएगा। लेकिन जब देश भर के कला स्कूलों के बनाए चित्र इस कसौटी पर खरे नहीं उतर पाए तब एक आईएएस अफसर बदरुद्दीन तैयब जी की पत्नी सुरैयातईब ने अशोक स्तंभ का प्रतीक के तौर पर एक चित्र में उकेरा, जिसे राष्ट्रीय भवन की प्रेस ने कुछ मामूली बदलावों के साथ संविधान सभा के सामने पेश किया और यह प्रति अगर आपको पसंद आया। लेकिन कागजों में दस्तावेजों और आपके पासपोर्ट पर जो अशोक स्तंभ आप देखते हैं इसे बनाने का काम प्रख्यात चित्रकार और शांति निकेतन के कला शिक्षक नंदलाल बोस के एक शिष्य दीनानाथ भार्गव ने किया। इसी चित्र को उन्होंने संविधान के पहले पन्ने पर स्केच किया था।
दरअसल मौर्य शासन काल के यह सिंह चक्रवर्ती अशोक सम्राट की ताकत को दिखाते थे। जब भारत में इसे राष्ट्रीय प्रतीक बनाया गया तो इसके जरिए सामाजिक न्याय और बराबरी की बात भी की गई।
भारत सरकार ने 26 जनवरी 1950 को इस प्रतीक को राष्ट्रीय प्रतीक के तौर पर अपनाया था।
लगे हाथ आपको अशोक स्तंभ से जुड़े कानून के बारे में भी जान लेना चाहिए।
अशोक स्तंभ का इस्तेमाल सिर्फ संवैधानिक पदों पर बैठे हुए व्यक्ति ही कर सकते हैं। इसमें भारत के राष्ट्रपति, उप राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, केंद्रीय मंत्री, राज्यपाल, उपराज्यपाल, न्यायपालिका और सरकारी संस्थाओं के उच्च अधिकारी सामिल है, लेकिन रिटायर होने के बाद कोई भी पूर्व अधिकारी या पूर्व मंत्री, पूर्व सांसद या फिर पूर्व विधायक बिना अधिकार के इस राष्ट्र चिन्ह का यूज नहीं कर सकते। इस कानून के तहत अगर कोई आम नागरिक इस तरह अशोक स्तंभ का इस्तेमाल करता है तो उसे दो वर्ष की कैद और ₹5000 तक का जुर्माने की सजा हो सकती है।
तो यह है अशोक स्तंभ से जुड़ी पूरी कहानी।
(ये आर्टिकल में सामान्य जानकारी आपको दी गई है अगर आपको किसी भी उपाय को apply करना है तो कृपया Expert की सलाह अवश्य लें) RRR
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