भारत में किसकी सरकार बनेगी ये ४ जून को साफ हो जाएगा। 7 चरणों के मतदान के बाद एग्जिट पोल भी आने शुरू हो गए हैं। इन एग्जिट पोल से थोड़ा बहुत अंदाजा तो लग ही जाएगा की देश में किस पार्टी का पलड़ा था। जनता ने किस पार्टी को अगले चुनावो तक के लिए चुना है। एग्जिट पोल से चुनावी नतीजे की तस्वीर का पता चलता है जिसे अलग-अलग एजेंसियां करवाती हैं। हालांकि कई बार ये एग्जिट पोल के नतीजे जो हैं वो गलत भी साबित होते हैं।
अब सवाल ये की एग्जिट पोल होते क्या है ?जिनसे यह अंदाजा लगता है की चुनाव में कौन सी पार्टी जितने वाली है और क्या होती है एग्जिट पोल की गाइडलाइंस? ये सब बताएंगे और बताएंगे ये भी के एग्जिट पोल ओपिनियन पोल से कैसे अलग होता है ?क्योंकि इसे लेकर भी लोगों के बीच बड़ा कन्फ्यूजन रहता ह की दोनों में अंतर क्या है?
सबसे पहले बात करते हैं एग्जिट पोल के बारे में। दरअसल एग्जिट पोल वोटिंग के तुरंत बात किया जाता है और इसमें केवल वोटर्स को ही शामिल किया जाता है। एग्जिट पोल करने के लिए किसी एजेंसी या न्यूज़ चैनल द्वारा सर्वे कराया जाता है। ये लोग किसी भी पोलिंग बूथ जाकर से कई सवाल करते हैं। आमतौर पर एक अच्छे एग्जिट पोल के लिए मजबूत एग्जिट पोल के लिए लगभग 30 से 35 हजार और एक लाख तक के वोटर से बात की जाती है। इसमें युवाओं से लेकर बुजुर्गों तक को शामिल किया जाता है। अगर बात करें की इस सर्वे के सवालों की तो यहां पर हम आपको बता दें इसमें कई सवाल पूछे जाते हैं की जैसे किसको वोट दिया है और हर लोकसभा के अलग-अलग पोलिंग बूथ से वोटर से सवाल पूछे जाते हैं। इसके बाद उनके जवाब के हिसाब से अंदाजा लगाया जाता है की जनता का मूड किस ओर है। कौन सी पार्टी को कितनी सिम मिल सकती हैं और हा इसका टेलीकास्ट या पब्लिशिंग तभी की जा सकती है जब वोटिंग खत्म हो जाए।
अब बात ओपिनियन पोल्स को लेकर।
एक तरफ जो है एग्जिट पोल वोटिंग के दिन या उसके बाद कराए जाते हैं तो वहीं पिनियन पोल्स चुनावो से पहले ही कर लिए जाते हैं। ओपिनियन पोल में सभी लोगों को शामिल किया जाता है। आप चाहे वो वोटर हो या फिर नहीं। जबकि एग्जिट पोल में ऐसा नहीं होता। हालांकि एग्जिट पोल और ओपिनियन पोल के जो सवाल हैं वो से ही हो सकते हैं। अब तक तो आप समझ ही गए होंगे की ओपिनियन पोल और एग्जिट पोल में क्या अंतर होता है ?
अब बात इससे जुड़े इतिहास की।
भारत में चुनावी सर्वे और एग्जिट पोल की शुरुआत 1980 के दशक में मानी जाती है। तब चार्टर्ड अकाउंटेंट से एक जर्नलिस्ट बने प्रणय रॉय ने वोटरों का मूड जाने के लिए ओपिनियन पोल किया था। शुरुआती सालों में एग्जिट पोल मैगज़ीन में छापा करते थे लेकिन जाल 1996 में हुए लोकसभा चुनाव के दौरान पहली बार ये एग्जिट पोल दूरदर्शन पर टेलीकास्ट हुए। जिसे सेंट्रल फॉर डी स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटी यानी सीएसडीएस ने किया था।
अब बात कर लेते हैं एग्जिट पोल की गाइडलाइंस के बारे में।
एग्जिट पोल सर्वे को लेकर भारत में पहली बार 1998 में गाइडलाइंस जारी हुई थी। चुनाव आयोग ने आर्टिकल 324 के तहत 14 फरवरी 1998 की शाम 5:00 बजे से 7 मार्च 1998 की शाम 5:00 बजे तक एग्जिट पोल और ओपिनियन पोल के नतीजे को टेलिविज़न पर दिखाने या अखबारों में पब्लिश करने पर रोक लगा दी थी। इस दौरान चुनाव का पहला चरण 16 फरवरी और आखिरी चरण 7 मार्च को हुआ था। इसके बाद समय-समय पर चुनाव आयोग एग्जिट पोल और ओपिनियन पोल को लेकर गाइडलाइंस जारी करता रहा है। रिप्रेजेंटेशन ऑफ पीपल एक्ट 1991 के मुताबिक जब तक सारे फेस की वोटिंग खत्म नहीं हो जाती तब तक एग्जिट पोल नहीं दिखाए जा सकते। आखिरी चरण की वोटिंग खत्म होने के आधे घंटे बाद एग्जिट पोल के नतीजे दिखाए जा सकते हैं। कानून के तहत अगर कोई भी चुनाव प्रक्रिया के दौरान एग्जिट पोल या चुनाव से जुड़ा कोई भी सर्वे दिखाता है ये चुनाव आयोग की गाइडलाइंस का उल्लंघन करता है तो उसे 2 साल तक की कैद या जुर्माना या फिर तुम लोगों की सजा हो सकती है।
(ये आर्टिकल में सामान्य जानकारी आपको दी गई है अगर आपको किसी भी उपाय को apply करना है तो कृपया Expert की सलाह अवश्य लें)
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