भारत रक्षा क्षेत्र में लगातार नए मुकाम हासिल कर रहा है। नई-नई मिसाइलों के परीक्षण किए जा रहे हैं। और भारत में बनी हुई मिसाइलें भी बाहरी देशों को भेजी जा रही हैं। इसी कड़ी में डीआरडीओ (DRDO) ने नई सफलता हासिल की है। रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन यानी डीआरडीओ अंग्रेजी में कहें तो डिफेंस रिसर्च एंड डेवलपमेंट ऑर्गेनाइजेशन ने देश की सबसे हल्की बुलेट प्रूफ जैकेट बनाई है।
अब इस जैकेट की क्या खासियत है ?
रक्षा मंत्रालय ने डीआरडीओ (DRDO) की सफलता के बारे में जानकारी दी है। देश की सबसे हल्की बुलेट प्रूफ जैकेट पॉलीमर बैकिंग और मोनोलिथिक सिरेमिक प्लेट से बनी है। इस जैकेट को छह स्नाइपर गोलियां भी भेद नहीं सकी। रक्षा मंत्रालय ने बताया कि जैकेट का इन कंजंक्शन और स्टैंड डाउन अलोन डिजाइन सैनिकों को 7.62 * 54 रैपी गोला बारूद से सुरक्षा देगा। इस जैकेट को कानपुर में तैयार किया गया है और इसका बचाव स्तर लेवल सिक्स का है। यानी यह खतरनाक से खतरनाक हमले भी बर्दाश्त कर सकती है।
दरअसल मौजूदा समय में जिस जैकेट का इस्तेमाल किया जाता है उसका वजन बहुत ज्यादा रहता है। और ऐसे में क्रिटिकल ऑपरेशंस के दौरान भी जवानों को बहुत भारी वजन उठाना पड़ता है। रक्षा मंत्रालय ने कहा कि एग्रोनॉमिक तरीके से डिजाइन की गई ये फ्रंट हार्ड आर्मरर पॉलीमर बैकिंग और मोनोलिथिक सिरेमिक प्लेट से बनी है।
बुलेट प्रूफ जैकेट काम कैसे करती है ?
शुरुआत में इंसान घायल होने और हमलों से बचने के लिए जानवरों की चमड़े का इस्तेमाल करता था। फिर जैसे-जैसे एडवांस्ड हथियार आने लगे वैसे-वैसे सुरक्षा के साधन में भी बदलाव हुआ। फिर लकड़ी और धातु से बने इन कवच का इस्तेमाल हमलों से बचने के लिए किया जाने लगा। और उसके बाद बुलेट प्रूफ जैकेट का आईडिया 15वीं सदी में आया।
इटली में धातुओं की कई परतों का इस्तेमाल करके यह कवच बनाया गया और गोली कवच को पार नहीं कर सकती थी। बल्कि उससे टकराकर अपनी दिशा बदल लेती थी। इससे जैकेट पहने इंसान पर गोलियों का कोई भी असर नहीं होता था। लेकिन यह कवच अग्नि से होने वाले हमलों के लिए प्रभावी नहीं थे। फिर जाकर 18वीं सदी में जापान में सिल्क कवच बनाया गया। यह कवच असरदार तो था लेकिन महंगा था।
आज वाली बुलेट प्रूफ जैकेट कैसे बनती है ?
सबसे पहले कलेवर फाइबर की रसायनों के घोल में कताई होती है। और उसकी मदद से धागे की एक बड़ी सी रील तैयार की जाती है। कलेवर मूल रूप से एक प्लास्टिक ही होता है और हद से ज्यादा लचीला होता है। इसका लचीलापन ही इसकी असली ताकत है। यह काफी टिकाऊ भी होता है और इसके अलावा ये अपने संपर्क में आने वाली एनर्जी को सोक लेता है। और उसको अलग-अलग हिस्सों में बांट देता है। अपने इन्हीं गुणों के कारण कलेवर किसी इंसान की तरफ आने वाली गोली को रोकने और उसकी एनर्जी को सोककर भी असर करने में काफी सक्षम है। खैर बड़ी सी रील जो तैयार की जाती है उस धागे से बैलिस्टिक शीट यानी एक चादर की कई परतें तैयार होती हैं। उन परतों को आपस में मजबूती से सिलक कई प्लेट्स बनाए जाते हैं। फिर उन प्लेट्स को एक जैकेट में फिट किया जाता है। जैकेट में इन प्लेट्स को बैलिस्टिक पैनल कहा जाता है। और इनके लिए जेबें भी होती हैं। जब गोली इन प्लेटों से टकराती है तो उसकी रफ्तार कम हो जाती है और वह छोटे-छोटे टुकड़ों में बिखर जाती है। फिर गोलियों को भेदने की क्षमता भी कम हो जाती है। और उसे पहने हुए इंसान के शरीर के पर्क में भी वह नहीं आ पाती। जब गोलीटुकड़ों में बिखर जाती है तो पहली लेयर से निकलने वाली ऊर्जा दूसरी परत सोख लेती है। लेकिन उसकी ऊर्जा शरीर के अंदरूनी अंग के लिए भी घातक साबित होती है। इस वजह से कई सैनिकों की मौत भी हो गई है। फिर यह पता चला कि अगर केबलर की कई परतों को आपस में सिल दिया जाए तो कुछ परत गोली को रोकने का काम करेगी बाकी परत उससे निकलने वाली ऊर्जा को सोख लेती है। इससे बुलेट प्रूफ पहने इंसान को नुकसान कम होता है।
तो यह हमने आपको बताया डीआरडी की बुलेट प्रूफ जैकेट के बारे में जो सबसे हल्की है और जैकेट कैसे काम करती है वह भी हमने आपको बताया।
(ये आर्टिकल में सामान्य जानकारी आपको दी गई है अगर आपको किसी भी उपाय को apply करना है तो कृपया Expert की सलाह अवश्य लें) RRR
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