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Live Darshan ambaji Temple



आबू अंबाजी के मंदिर निर्माण के लिए कई दिन तक थे प्रचलित है। लेकिन अंबाजी मंदिर गुजरात का निर्माण 1584 से 1594 का समय में करवाया गया है। और उसमें अहमदाबाद शहर के एक नागरभक्त श्री तपाशंकर का नाम लिया जाता है। और दूसरी तरफ वल्लभी के शासन अरुण सेन जो की सूर्यवंश सम्राट कहे जाते थे। उन्होंने चौथी शताब्दी में बनवाया था। 

Live darshan Ambaji 2024


पूरे भारत में एक तीर्थ के रूप में प्रसिद्ध श्री आरासुरी अंबाजी माता मंदिर गुजरात राज्य के बनासकांठा जिले के दाता तालुका में स्थित है। जो की एक पौराणिक शक्तिपीठ के रूप में जाना जाता है। अंबाजी तीर्थ में लाखों श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं। उनकी सुख सुविधाओं को बनाए रखना के साथ-साथ मानसिक शांति और शक्ति प्राप्त करने के लिए राज्य सरकार मंदिर के जिणोरद्वार और शिखर के कार्य को पूरा करने के लिए अथक प्रयास किया हैं और स्वर्ण कलश का सम्मान किया है। यह 358 स्वर्ण कलश वाला भारत का एकमात्र शक्तिपीठ है। 51 शक्तिपीठों में हृदय समूह अंबाजी लाखों श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र है। अंबाजी अरावली के निर्मल में एक पवित्र तीर्थ स्थल है जो समुद्र ताल से 1600 फिट की ऊंचाई स्थित है। जिसके आसपास के गांव से होते हुए आबादी करीब 20000 है। अंबाजी गांव में तीर्थ वस्तुओं के व्यापार और संगमरमर उद्योग का बड़े पैमाने पर विकास हुआ है। 


मां अंबा प्रगति की गाथा के अनुसार प्रजापति दक्ष ने बृहस्पति शक नमक महायग्य का आयोजन किया। दक्षिण सभी देवताओं को आमंत्रित किया, लेकिन उन्होंने अपने दामाद भगवान शंकर को नहीं बुलाया। पिता के वहां यज्ञ करने का समाचार सुनकर भगवान शंकर के विरोध के बावजूद सती देवी अपने पिता के यहां पहुंची। अपने पिता द्वारा वहां आयोजित महान यज्ञ में भगवान शिवा को आमंत्रित करते हुए और अपने पिता के मुंह से अपने पति का रोना सुनकर वह यज्ञ कुंड में गिर गए और अपने प्राण त्याग दिए। भगवान शिवा ने सती देवी के बेहोश शरीर को देखा और सबको कंधों पर उठाकर तीनों इधर-उधर घूमने लगे। 

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पुरी सृष्टि के नष्ट हो जान के डर से भगवान विष्णु ने सती के शरीर को अपने चक्र से काटकर पृथ्वी पर फेक दिया। सती के शरीर के अंग और आभूषण  52 स्थान पर गिरे। इसी स्थान पर एक शक्ति और एक भैरव ने छोटे-छोटे रूप धरण कर बस गए। तंत्र चूड़ामणि में इन 52 महापीठों का उल्लेख है। इनमें से एक शक्तिपीठ रसूल अंबाजी का माना जाता है। माना जाता है की माताजी के हृदय का हिस्सा रसूल में गिरा था। भागवत में उल्लेख है की अलअसुरमा में मां अंबा के यहां भगवान श्रीकृष्ण के बाल गिरने की रसम हुई थी। उसे अवसर पर नदी यशोदा ने माताजी के यहां जावरा बॉया था।  यह स्थान आज भी गब्बर पर्वत पर देखा जा सकता है। 


(ये आर्टिकल में सामान्य जानकारी आपको दी गई है अगर आपको किसी भी उपाय को apply करना है तो कृपया Expert की सलाह अवश्य लें) RRR
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