इस पूरे भारत में भगवान श्रीकृष्ण को समर्पित कई सारे मंदिर है और इन्ही मंदिरों में से एक है द्वारकाधीश मंदिर। जो गोमती नदी के तट पर बसे द्वारका शहर में स्थित है। द्वारका शहर में बसा यह मंदिर चार धामों में से एक है। इसे जगत मंदिर के नाम से भी जाना जाता है।
मान्यता के अनुसार इस स्थान पर मंदिर का निर्माण सबसे पहले भगवान श्रीकृष्ण के परपोते वर्जनादने किया था है और जिस स्थान पर यह मंदिर बना है वही भगवान श्री कृष्ण का निवास स्थान था। इस मंदिर में प्रवेश करने के लिए दो द्वार है एक है मुख्य द्वार जो उत्तर दिशा की ओर है और दूसरा है स्वर्गद्वार जो दक्षिण दिशा की ओर है।
अगर इस मंदिर में स्थापित मूर्ति को देखें तो उनकी आंखें अधूरी दिखाई देती है और इसके पीछे भी एक कथा प्रचलित है। 15वीं शताब्दी की बात है जब हर जगह युद्ध का माहौल था तब इस मूर्ति का बचाव करने के लिए पंडितों ने इसे सावित्री नाम के कुएं में छिपा दिया था। इस घटना के कुछ साल बाद भगवान श्रीकृष्ण ने एक ब्राह्मण के सपने में आकर दृष्टांत दिया कि वह एक विशिष्ट समय के बाद उस मूर्ति को कूड़े से निकाले। भगवान कृष्ण की इस बात को सुनकर ब्राह्मण को रहा न गया और सही समय की प्रतीक्षा किए बिना उन्होंने वह मूर्ति बाहर निकाली थी। परंतु उस मूर्ति के आंखें अधूरी बनी थी और यही मूर्ति आज द्वारकाधीश मंदिर में स्थापित है। मंदिर पर लहराता झंझाल दिन में पांच बार बदला जाता है। उस झंडे पर चंद्र और सूर्य बनाए गए हैं। चंद्र और सूर्य यह दर्शाते हैं कि जब तक चंद्र और सूर्य का अस्तित्व रहेगा तब तक भगवान श्रीकृष्ण का वास रहेगा। इस मंदिर से तकरीबन दो किलोमीटर की दूरी पर उनकी पत्नी रुक्मिणी का मंदिर है।
भगवान कृष्ण और रुक्मिणी के अलग-अलग मंदिर होने के पीछे एक कथा प्रचलित है। आइए सुनते हैं यह कथा ?
इस मंदिर से जुड़ी कई बातें हैं जैसे भगवान श्री कृष्ण की हर तरफ प्रशंसा सुन रुक्मिणी ने मन-ही-मन उनसे विवाह करने का निर्णय कर लिया था। और उन्होंने भगवान श्रीकृष्ण को अपनी भावनाएं व्यक्त करते हुए सात श्लोकोवाला एक पत्र लिखा। इस पत्र को प्रतिदिन रुक्मिणी देवी के सामने पढ़ा जाता है। द्वारकाधीश मंदिर में मनाया जाने वाला सबसे मुख्य त्योहार है जन्माष्टमी का। इसके अलावा भगवान श्री कृष्ण और रुक्मिणी के विवाह को भी बड़े उत्सव के रूप में यहां पर मनाया जाता है। जिन के दौरान भक्त इस मंदिर को भेट देकर द्वारकाधीश के दर्शन पाते हैं।
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एक समय की बात है जब भगवान श्रीकृष्ण और उनकी पत्नी रुक्मिणी ऋषि दूर्वा से मिलने गए थे। रुक्मिणी ने उन्हें अपने महल आने का आमंत्रण दिया। जिसका स्वीकार रूसी दूतावास ने एक शर्त पर किया है कि वह चाहती थी कि जिस रथ में वह महल आएंगे उस रथ को भगवान श्री कृष्ण और रुक्मिणी खीचेंगे। ऋषि रुक्मिणी भगवान श्री कृष्ण और रुक्मिणी ने इस शर्त को बिना किसी संकोच के मान लिया। पुरुष भगवान श्री कृष्ण और रुक्मणी के साथ महल के लिए निकल पड़े। शर्त के अनुसार श्री कृष्ण और रुक्मणी उस रथ को खींचने लगे जिसमें प्रसिद्ध दूर्वा घास बैठे थे। कुछ दूरी पर आने के बाद रुक्मिणी उस रथ को खींचते हुए थक गई और उन्हें बहुत जोरों की प्यास लगी। श्रीकृष्ण को यह बात समझ आई तब उन्होंने अपने पैर के अंगूठे से जमीन में एक छेड़ किया जिसमें से मां गंगा का पानी निकला और उस पानी से रुक्मिणी ने अपने प्रयास को बुझाया। परंतु ऋषि दुर्वासा को यह बात पसंद नहीं आई कि रुक्मिणी ने खुद पानी पीने से पहले उन्हें आग्रह नहीं किया है। और उन्होंने अपने दुर्व्यवहार के कारण रुक्मिणी को यह श्राप दिया कि वह और श्रीकृष्ण अलग हो जाएंगे। और यही कारण है कि रुक्मिणी का मंदिर भगवान श्री कृष्ण के मंदिर से कुछ दूरी पर है।
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(ये आर्टिकल में सामान्य जानकारी आपको दी गई है अगर आपको किसी भी उपाय को apply करना है तो कृपया Expert की सलाह अवश्य लें) Share
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